ब्रह्मोस से C-295, जल, थल और नभ, 10 खतरनाक हथियार जो देश में ही हुए तैयार
India Dangerous Weapons: भारत बदल रहा है. शक्तिशाली हो रहा है. ये दुनिया कह रही है. मगर क्यों? क्या सिर्फ हमारे बाजार, बढ़ती अर्थव्यवस्था या राजनीतिक स्थिरता के कारण ही ऐसा कहा जा रहा है? जवाब हां है, लेकिन साथ ही इसमें पिछले 10 सालों में भारत के बनाए हथियारों का भी बहुत बड़ा योगदान है. 2014 में जब केंद्र की सत्ता बदली तो सोच और तरीका भी बदल गया. पीएम नरेंद्र मोदी को महसूस हुआ कि दूसरे देशों के खरीदे हथियारों के बल पर युद्ध तो किसी तरह जीते जा सकते हैं, लेकिन कोई दुश्मन युद्ध करने की सोचे ही नहीं इसके लिए खुद हथियारों को बनाना होगा.
तेजस- तेजस को HAL ने बनाया है. इसे बनाने का सपना 1983 में देखा गया और तब से ये बनाया जा रहा था. हालांकि, यह भारतीय वायुसेना में 2016 में शामिल हुआ. यह भारत का पहला स्वदेशी लड़ाकू विमान है. यह हवा में ईंधन भरने में भी सक्षम है. यह हवा से हवा में और जमीन पर मिसाइल दागने में सक्षम है. इसमें एंटीशिप मिसाइल, बम और रॉकेट भी लगाए जा सकते हैं. 28 मार्च 2024 को इसके नये वैरिएंट तेजस मार्क 1A का सफल परीक्षण किया गया. तेजस एमके1ए में उन्नत इलेक्ट्रॉनिक रडार, युद्ध और संचार प्रणाली, अतिरिक्त युद्ध क्षमता और बेहतर रखरखाव की सुविधाएं होंगी.अब तेजस मार्क 2 की भी तैयारी हो रही है.2025 में अपनी पहली उड़ान भरने की संभावना है.तेजस मार्क-2 इसके ही पूर्ववर्ती एलसीए तेजस मार्क-1 का आधुनिक वर्जन है. इस एयरक्राफ्ट में मार्क-1 की तुलना में आधुनिक हथियार होंगे. इसके साथ ही इसमें आधुनिक एवियॉनिक्स, डिजिटल फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम (फ्लाई-बाय-वायर) भी शामिल होगा. इस विमान का डिजाइन पूरा कर लिया गया है. यह विमान स्टेल्थ तकनीक पर आधारित होगा. इसमें अलग प्रकार की तकनीक और धातु की इस्तेमाल किया जाता है. यह 5.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान होगा. यह 2040 तक भारतीय वायुसेना में शामिल हो सकता है. यह दो इंजनों वाला बहुउद्देशीय विमान होगा.
LCH प्रचंड-देश में ही विकसित हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (LCH) को 03 अक्टूबर, 2022 को औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना ने अपने बेड़े में शामिल किया. यह हेलीकॉप्टर रडार को चकमा देने में सक्षम है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में स्वदेशी हेलीकॉप्टर वायु सेना में शामिल हुआ. यह कई तरह की मिसाइल दागने और हथियारों का इस्तेमाल करने में सक्षम है.एलसीएच को सार्वजनिक उपक्रम ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (एचएएल) ने विकसित किया है और इसे ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात करने के लिए विशेष तौर पर डिजाइन किया गया है. 5.8 टन वजन के और दो इंजन वाले इस हेलीकॉप्टर में कई घातक हथियार हैं. इस हेलीकॉप्टर की रफ्तार 270 किलोमीटर प्रति घंटे है. इसकी लंबाई 51.1 फीट है और 15.5 फीट ऊंचाई है. LCH पर फायरिंग का कोई खास असर नहीं पड़ सकता है. इसका रेंज 50 किलोमीटर तक है और यह 16,400 फीट की ऊंचाई से हमला कर सकता है. इस हेलीकॉप्टर को आतंकवाद निरोधी ऑपरेशंस के दौरान अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित बंकरों को तबाह करने के लिए भी तैनात किया जा सकता है. इसके अलावा जंगली इलाकों में नक्सल अभियानों में भी ग्राउंड फोर्स की मदद के लिए तैनात किया जा सकता है.एलसीएच और ‘एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर’ ध्रुव में कई समानताएं हैं. इसमें ‘स्टील्थ’ (रडार से बचने की) खूबी के साथ ही बख्तरबंद सुरक्षा प्रणाली से लैस और रात को हमला करने व आपात स्थिति में सुरक्षित उतरने की क्षमता शामिल हैं.
आईएनएस विक्रांत- PM मोदी ने पहला स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस ‘विक्रांत’देश को 2 सितंबर 2023 को समर्पित किया. विक्रांत भारत में बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है.INS विक्रांत के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है, जो स्वदेशी स्तर पर विमानवाहक पोत बना सकते हैं. INS विक्रांत के अंदर 2,300 कंपार्टमेंट हैं. इसमें 16 बेड का अस्पताल भी है, जिसमें दो ऑपरेशन थिएटर, लैब, ICU और CT स्कैन है. जहाज में बनी किचन को गैले कहा जाता है, जिसमें एक साथ सैकड़ों नौसैनिकों के लिए भोजन बन सकता है. रहने के लिए क्वार्टर बने हुए हैं. जहाज की लंबाई 262 मीटर, ऊंचाई 60 मीटर और वजन 45,000 टन है. इस जहाज पर समुद्र की तेज लहरों का कोई खास असर महसूस नहीं होता है. सरकारी जहाज बनाने वाली कंपनी कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) ने INS विक्रांत को 13 साल में तैयार किया है. संस्कृत भाषा में विक्रांत का मतलब बहादुर है. कंपनी ने साल 2009 में इसका निर्माण शुरू किया था और आखिरकार यह सेना में शामिल हो गया.
एके 203- एके 203 का उत्पादन संयंत्र उत्तर प्रदेश के अमेठी में है.यहां से 35000 एके 203 असॉल्ट राइफलें सीमावर्ती इलाकों में भारतीय सेना को मिल गईं हैं. दिसंबर 2024 तक सेना को 20000 और राइफलें मिलेंगी. इसे इंडो रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड बना रही है. यह रक्षा मंत्रालय के तहत एक संवेदनशील और रणनीतिक परियोजना है. इस कंपनी के पास रूस की कलाश्निकोव कंपनी से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ भारत में 601427 एके 203 राइफल बनाने का ऑर्डर है. एके 203 दुनिया की सर्वश्रेष्ठ असॉल्ट राइफलों में से एक है. 800 मीटर की रेंज और 700 राउंड प्रति मिनट की फायरिंग दर के साथ ये आतंक विरोधी और पारंपरिक ऑपरेशन में देश के दुश्मनों के लिए एक घातक हथियार होगा. AK-203 असॉल्ट राइफल भारत और रूस के संयुक्त प्रयास से बनाई जा रही है यह AK-47 की नई और उन्नत वर्जन है.AK-203 को कठोर परिस्थितियों में भी प्रभावी ढंग से काम करने के लिए बनाया गया है। चाहे धूल, कीचड़, या पानी हो, यह राइफल सभी परिस्थितियों में काम करती है.यह राइफल हल्की है, जिससे इसे लंबे समय तक आराम से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका वजन करीब 3.8 किलोग्राम है, जो सैनिकों को इसे आसानी से ले जाने और इस्तेमाल करने में मदद करता है.AK-203 में स्वचालित और अर्ध-स्वचालित फायरिंग मोड होते हैं, जिससे सैनिक स्थिति के अनुसार फायरिंग का चयन कर सकते हैं. एक वर्ष में फैक्ट्री हर दिन 600 से ज्यादा राइफलें बनाने में सक्षम होगी. इन्हें मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत मित्र विदेशी देशों में भी निर्यात किया जाएगा.
K9-वज्र-K9-वज्र 155 मिमी 52 कैलिबर ट्रैक्ड सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्ज़र कम वेग पर उच्च प्रक्षेपपथ पर गोले दागने के लिये एक छोटी तोप है.इसे K9-वज्र केंद्र की मेक इन इंडिया नीति के तहत गुजरात के लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के आर्मर्ड सिस्टम कॉम्प्लेक्स में बनाया गया है. दक्षिण कोरियाई कंपनी से इसकी प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की गई है. K9 थंडर प्लेटफॉर्म पूरी तरह से वेल्डेड स्टील कवच सुरक्षा सामग्री से बना है. K9-वज्र को रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure- DPP) के ‘बाय ग्लोबल’ (Buy Globa)’ कार्यक्रम के तहत विकसित किया गया है. K9-वज्र को मुख्य रूप से रेगिस्तान में उपयोग के लिये खरीदा गया था, लेकिन भारत-चीन गतिरोध ने उन्हें पहाड़ों में भी तैनात किया गया.तकरीबन 45 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली यह ऑटोमेटिक तोप महज 15 सेकंड में दुश्मन पर 3 गोले दाग सकती है. ये तोप 0 रेडियस पर घूमकर वार कर सकती है.इसमें टैकों की तरह ट्रैक भी लगे हैं, जिससे मैदानी इलाके में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.कई मामलों में यह बोफोर्स तोप को भी पीछे छोड़ती है.
न्यूक्लियर सबमरीन-इंडियन नेवी की न्यूक्लियर सबमरीन‘INS अरिघात’ बनकर 29 अगस्त 2024 को स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड (एसएफसी) का हिस्सा बन गई. यह भारत की दूसरी न्यूक्लियर सबमरीन है. आधिकारिक तौर पर इसके शामिल होने के बाद भारत के पास 2 SSBN न्यूक्लियर सबमरीन हो गईं.इससे पहले साल 2016 में स्वदेशी न्यूक्लियर सबमरीन INS अरिहंत’ को जंगी बेड़े में शामिल किया था.भारत की इस दूसरी न्यूक्लियर सबमरीन को विशाखापट्टनम स्थित शिपयार्ड में बनाया गया है. INS अरिघात समुद्र से 750 किलोमीटर दूर तक मार करने वाली K-15 बैलिस्टिक मिसाइल (न्यूक्लियर) से लैस है. इतना ही नहीं इंडियन नेवी इस सबमरीन को 4000 किलोमीटर तक मार करने वाली K-4 मिसाइल से भी लैस करेगी.इस न्यूक्लियर सबमरीन का वजन करीब 6000 टन है. INS अरिघात की लंबाई 111.6 मीटर और चौड़ाई 11 मीटर है. इसकी गहराई 9.5 मीटर है. समुद्र की सतह पर इसकी रफ्तार 12 से 15 समुद्री मील (यानी 22 से 28 किलोमीटर) प्रति घंटा है.इसपर K-15 और BO-5 शॉर्ट रेंज की 24 मिसाइलें तैनात हैं. ये सबमरीन 700 किलोमीटर तक टारगेट को हिट कर सकती है.INS अरिघात समुद्र के अंदर मिसाइल अटैक करने में उसी तरह सक्षम है, जिस तरह अरिहंत से 14 अक्टूबर 2022 को K-15 SLBM की सफल टेस्टिंग की गई थी. INS अरिहंत और INS अरिघात के बाद नेवी को तीसरी न्यूक्लियर सबमरीन INS अरिदम का बेसब्री से इंतजार है. इसका डेवलपमेंट जारी है. इसके बाद भारत के जंगी बेड़े में 16 डीजल (SSK) कन्वेंशनल सबमरीन हो जाएंगी. साथ ही 3 न्यूक्लियर सबमरीन (SSBN) भी भारत के पास होंगी.
एयर डिफेंस सिस्टम- भारत ने 14 अक्तूबर 2024 को पोखरण (Pokhran Field Firing Ranges) में खुद के बनाए ‘आयरन डोम'(Iron Dome) का सफल परीक्षण किया है. यह चौथी पीढ़ी की कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली है.इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने बनाया है.इसे आसमान में भारत का स्वदेशी रक्षक भी कह सकते हैं. तकनीकी भाषा में इसे वेरी शार्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (Very Short Range Air Defence System) या VSHORADS कहते हैं. आम भाषा में इसे कंधे से दागे जाने वाली विमान भेदी मिसाइल भी कह सकते हैं.अत्याधुनिक तकनीक से लैस इस रक्षा प्रणाली को इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसे आसानी से कहीं भी ले जाया सकता है. इसकी खासियत ये है कि यह कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों, मानव रहित विमान सहित हेलीकॉप्टर को भी मार गिरा सकता है. इसके अलावा, ये हवाई हमलों से बचाव कर पाने में भी सक्षम है. ये रिएक्शन कंट्रोल सिस्टम और इंटीग्रेटेड एविओनिक्स सिस्टम से लैस है. प्रतिक्रिया नियंत्रण प्रणालियां किसी भी दिशा में मिसाइल को Thrust देने में सक्षम हैं. साथ ही इमेजिंग इंफ्रारेड होमिंग सिस्टम भी लगा है. इस तकनीक से दुश्मन के हवाई हमलों को ट्रैक करने में मदद मिलती है. इसके अलावा भारत के पास इंडियन बैलिस्टिक मिसाइल डिफ़ेंस प्रोग्राम, S-400 ट्रिम्फ़ एयर डिफ़ेंस सिस्टम, आकाश एयर डिफ़ेंस सिस्टम भी हैं.
मिसाइल-भारत के पास कई तरह की खुद की बनाई मिसाइलें हैं. इनमें आकाश, पृथ्वी और अग्नि के कई वैरिएंट हैं. भारत मिसाइलों के मामले में काफी आगे है. ब्रम्होस के नाम से तो बड़े-बड़े देश कांपते हैं.अभी हाल ही में राजस्थान के पोखरण में स्वदेशी एंटी-टैंक मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया. पोखरण में फील्ड फायरिंग रेंज में DRDO ने सफल परीक्षण किया.यह स्वदेशी रूप से विकसित मानव-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल है. इस हथियार प्रणाली को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने किया डिजाइन और विकसित किया है. यह एमपी-एटीजीएम एक कंधे से दागी जाने वाली मिसाइल प्रणाली है, जिसे दुश्मन के टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को बेअसर करने के लिए डिजाइन किया गया है.इसके साथ ही एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल वेपन सिस्टम का भी परीक्षण हो चुका है. इसे 2.5 किमी की अधिकतम सीमा के लिए डिजाइन किया गया है. इसका प्रक्षेपण भार 15 किलोग्राम से कम है. एटीजीएम प्रणाली दिन/रात और शीर्ष हमले की क्षमता से सुसज्जित है. इसी साल सुखोई-30 लड़ाकू विमान से हवा से सतह पर मार करने वाली ‘रुद्रम’ मिसाइल का सफल परीक्षण भी किया गया था. स्ट्रैटेजिक फॉर्स कमांड (SFC) ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ मिलकर 3 अप्रैल 2024 को शाम को 7 बजे ओडिशा के तट पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से न्यू जेनरेशन बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-प्राइम का सफल उड़ान परीक्षण किया. टर्मिनल प्वॉइंट पर रखे गए दो डाउनरेंज जहाजों सहित विभिन्न स्थानों पर तैनात कई रेंज सेंसर द्वारा कैप्चर किए गए डेटा के मुताबिक, मिसाइल ने अपने विश्वसनीय प्रदर्शन का सत्यापन करते हुए परीक्षण के सभी उद्देश्य हासिल कर लिए.
मिशन शक्ति-27 मार्च 2019 को भारत अंतरिक्ष की बड़ी शक्ति बन गया. भारत ने अंतरिक्ष में एंटी मिसाइल से एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराते हुए अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर दर्ज करा दिया.इस उपलब्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में यह जानकारी दी थी. भारत अंतरिक्ष में निचली कक्षा में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला चौथा देश बन गया. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन के पास ही ऐसी उपलब्धि थी.एंटी सैटेलाइट विपन्स (ASAT) को उपग्रहों को नष्ट करने या निष्क्रिय करने के लिए बनाए जाते हैं. ऐसे कई देश हैं जिनके पास यह क्षमता है, लेकिन भारत सहित केवल चार देशों ने अपनी ASAT क्षमताओं का साबित किया है. अमेरिका ने पहली बार साल 1958, रूस (Union of Soviet Socialist Republics- USSR) ने 1964 और चीन ने 2007 में ASAT का परीक्षण किया था. साल 2015 में, रूस ने अपनी PL-19 Nudol मिसाइल का परीक्षण किया और अन्य परीक्षणों के साथ इसका पालन किया. डीआरडीओ ने फरवरी 2010 में घोषणा की थी कि भारत अंतरिक्ष में दुश्मन के उपग्रहों को नष्ट करने के लिए एक हथियार बनाने के लिए आवश्यक तकनीक विकसित कर रहा है. इस एक कारनामे से भारत अंतरिक्ष में भी अपनी सुरक्षा से जुड़े हितों को सुरक्षित करने में कामयाब हो गया.
C-295 Aircraft-आज पीएम नरेंद्र मोदी ने स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ के साथ गुजरात के वडोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) की नई सी-295 विमान (C-295 aircraft) निर्माण यूनिट का उद्घाटन किया है. यह यूनिट सैन्य विमानों के लिए भारत की पहली निजी क्षेत्र की फाइनल असेंबली लाइन (एफएएल) है, जो देश की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी. C-295 विमान को दो पायलट उड़ाते हैं. इसमें 73 सैनिक को एक साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है. यानी इतने कमांडोज को एक साथ कहीं भी ले जाया जा सकता है. सैन्य ऑपरेशन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी. इसमें एक साथ 12 स्ट्रेचर इंटेसिव केयर मेडवैक या 27 स्ट्रेचर मेडवैक के साथ 4 मेडिकल अटेंडेंट सफर कर सकते हैं. सी-295 विमान 5-10 टन परिवहन क्षमता के साथ सामरिक संचालन के लिए डिज़ाइन किया गया है. इस विमान की लंबाई 80.3 फीट, पंखे 84.8 फीट और इस विमान की ऊंचाई 28.5 फीट है. इसके अलावा विमान में 7650 लीटर तेल आता है. यह अधिकतम 482 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता है. यह विमान 1277 से 4587 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है. यह विमान अधिकतम 13,533 फीट की ऊंचाई तक उड़ सकता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे छोटा रनवे चाहिए होता है. इसे उड़ान भरने के लिए 844 मीटर से 934 मीटर लंबाई वाला रनवे और उतरने के लिए केवल 420 मीटर का रनवे लगता है.
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