दरकती दीवारें, छत से टपकता पानी, बिना बिजली वाली इमारत! जान हथेली पर रख कर कैसे रह रहे मुबईकर
सपनों के शहर मुंबई में गगनचुम्बी इमारतों की क़ीमतें और किराया इस क़दर आसमान छूने लगा है कि लोग “ख़तरनाक” श्रेणी या जर्जर इमारतों में भी जान जोखिम में डालकर कम किराए पर रहने या दुकान-व्यापार चलाने के लिए मजबूर हैं. जानकारी के मुताबिक, मुंबई के मलाड इलाके का किराया कम है. अगर अच्छी बिल्डिंग में जाते हैं तो सामान्य इमारतों से उन्हें किराया दस गुना से भी कहीं ज़्यादा देना पड़ेगा. एनडीटीवी की इस खास पेशकश में हम इनकी कहानी के बारे में बताएंगे.
मनीष केनिया की कहानी
मनीष केनिया क़रीब पचास साल से पगड़ी पर ये किराना दुकान चलाते आ रहे हैं, इमारत को ख़ाली करने का सरकारी नोटिस मिल चुका है. जर्जर बिल्डिंग में दुकान चलाने वाले मनीष केनिया बता रहे हैं कि ना बिजली है और ना ही ग्राहक, इसके बावजूद हम यहां रह रहे हैं. उन्होंने एनडीटीवी को बताया कि मुंबई में किराया बहुत ही ज्यादा महंगा है, ऐसे में हम यहां रहने को मजबूर हैं.
मायानगरी में इस हाल में रहने वालों की कई कहानी मिल जाएगी. लोग मजबूरी में ऐसी बिल्डिंगों में रहने को मजबूर हैं. जर्जर बिल्डिंग पर सरकारी नोटिस कई बार चस्पा दिए गए हैं, मगर शहर इतना महंगा कि आम लोगों के लिए दूसरी जगह जाना एक सपना ही है.
जगह बदली तो दिक्कत होगी
35 साल से अरुण गोगरी तो रमणीक भाई 39 सालों से पगड़ी पर मिली दुकान में व्यापार कर रहे हैं, अब इनकी इमारत को भी ख़तरनाक श्रेणी में रखा गया है. बावजूद इसके यहां लोग रहने और व्यापार करने के लिए मजबूर हैं. बाहर जगह ढूंढी तो 40-50 हज़ार किराया और जमाजमाया ग्राहक छूटने का डर है.
उन्होंने बताया कि अगर जगह छूटती है तो ग्राहक भी छूट जाएंगे. मुंबई में तो जीना मुश्किल है हम जैसों के लिए. इतनी ज़्यादा महंगाई है. इसलिए यहीं रह रहे हैं किसी तरह, जब तक डेवलपर किराया नहीं देता. कुछ महीने में टूटेगी बिल्डिंग अपने को जगह मिलेगी, लेकिन ये वाली बात नहीं रहेगी. बाहर जाने का तो सोच भी नहीं सकते.
मुंबई में 1BHK का किराया 40 हजार
यहां रहने वाले असलम शेख का कहना है कि मुंबई में किराये की दरें भारत में सबसे अधिक हैं एक कमरे के अपार्टमेंट का औसत किराया 40000 रुपये है। साथ ही छोटे कमरे का किराया भी हैरान करने वाला है। बिल्डिंग की हालत और जगह के हिसाब से क़ीमतें ऊपर या नीचे जाती हैं. जितनी जर्जर हालत हो किराया उतना कम होता है ऐसे में लोग जान की जगह सस्ता जुगाड़ चुनते हैं. भले ही ये जोखिम भरा हो.
इस इलाके में राजेश तिवारी 70 साल से चाय की दुकान चला रहे हैं. वो यहां से जाना नहीं चाहते हैं, उनका कहना है कि अब तो जैसी ही हालत है यहीं रहेंगे मरेंगे. कहां जाएं. कहीं बसने लायक़ स्थिति नहीं है. छज्जा गिरा तो गिरे, क्या करें?
बताया जाता है कि शहर में 13,000 से अधिक इमारतों को ढहने से बचाने के लिए ‘निरंतर मरम्मत’ की आवश्यकता है. 100 से ऊपर इमारतों को “ख़तरनाक” श्रेणी में रखा गया है लेकिन लोग बिना फ़ौरन मुआवज़ा परिसर ख़ाली करने से बचते हैं क्योंकि उन्हें पास के समान अपार्टमेंट के लिए लगभग 10 गुना अधिक भुगतान करना होगा।