पैरासिटामोल-BP समेत 50 से ज्यादा मेडिसिन क्वालिटी टेस्ट में फेल, क्या आप भी ले रहे नकली दवाइयां? ऐसे करें पहचान
आज के ज़माने में सांस लेने के लिए हवा में प्रदूषण है. पानी खराब है. खाने-पीने की अधिकतर चीज़ों में कैमिकल मिले रहते हैं. हमारी लाइफस्टाइल भी बिगड़ती जा रही है. ऐसे में बीमार होना आम बात है. बीमार होने पर कोई सेल्फ मेडिकेशन करता है, तो कोई डॉक्टर की सलाह से दवाइयां खाता है. हमें भरोसा होता है कि दवाइयां खाने से हम ठीक हो जाएंगे. लेकिन अगर दवाइयों को लेकर ही शक पैदा हो जाए या दवा जांच में फेल हो जाए तो चिंता होनी लाज़िमी है.
देश की सबसे बड़ी ड्रग रेगुलेटरी बॉडी सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने दो दिन पहले एक लिस्ट जारी की. CDSCO ने 53 दवाओं का क्वालिटी टेस्ट किया था. इनमें से 48 दवाओं की ही लिस्ट जारी की गई है. 53 में से 5 दवाइयां बनाने वाली कंपनियों ने कहा कि ये उनकी मेडिसिन नहीं हैं, बल्कि मार्केट में उनके नाम से नकली दवाइयां बेची जा रही हैं. इसके बाद उन्हें लिस्ट से हटा दिया गया. CDSCO की इस रिपोर्ट में इन दवाओं के हर बैच को नहीं, बल्कि कुछ खास बैच को ही नॉट फॉर स्टैंडर्ड क्वालिटी का बताया गया है. फिर भी ये चिंता की बात तो है.
आइए जानते हैं कौन-कौन सी दवाएं क्वालिटी टेस्ट में हुईं फेल? सेल्फ मेडिकेशन में ऐसे कौन-कौन सी दवाओं को होता है इस्तेमाल? कैसे करेंगे दवा के नकली होने की पहचान:-
कौन-कौन सी दवाएं क्वालिटी टेस्ट में हुई फेल?
पैरासिटामॉल, विटामिन, शुगर और ब्लड प्रेशर की दवाओं के अलावा एंटीबायोटिक्स भी क्वालिटी टेस्ट में फेल पाई गई हैं. कैल्शियम और विटामिन D3 सप्लीमेंट्स, एंटी डायबिटीज की गोलियां और हाई ब्लड प्रेशर की दवाएं भी इस लिस्ट में शामिल हैं.
CDSCO ने इन दवाओं को किया बैन
बैन की गई दवाओं की लिस्ट में दौरे और एंग्जाइटी में इस्तेमाल की जाने वाली क्लोनाजेपाम टैबलेट, दर्द निवारक डिक्लोफेनेक, सांस की बीमारी के लिए इस्तेमाल होने वाली एंब्रॉक्सोल, एंटी फंगल फ्लुकोनाजोल और कुछ मल्टी विटामिन और कैल्शियम की गोलियां हैं. ये दवाएं हेटेरो ड्रग्स, अल्केम लेबोरेट्रीज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (HAL), कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनियां बनाती हैं.
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कौन-कौन सी कंपनियां तैयार करती हैं ये दवाइयां?
-एंटी बैक्टीरियल दवा Clavam 625 को Alkem Health Science’s नाम की कंपनी बनाती है. दक्षिण सिक्किम के नामथांग में इसका प्रोडक्शन होता है. इसके बैच नंबर 23443940 को नकली पाया गया है.
– कैल्शियम और विटामिन डी सप्लीमेंट Shelcal को Pure & Cure Healthcare कंपनी बनाती है. इस दवा के भी एक ख़ास बैच को गुणवत्ता से परे बताया गया है. ये दवा हरिद्वार यूनिट में तैयार होती है.
-बहुत ज़्यादा इस्तेमाल में आने वाली एक और दवा है Pan D. ये एख एंटैसिड है. इसके भी एक ख़ास बैच को नकली बताया गया है. इसे भी Alkem Health Science’s बनाती है.
-Karnataka Antibiotics & Pharmaceuticals Ltd’s की paracetamol tablet का एक बैच भी इस रिपोर्ट में शामिल है. कई और कंपनियों की भी पैरासिटेमॉल टैबलेट इस लिस्ट में हैं.
-हैदराबाद स्थित Hetero लैब्स की Cepodem XP 50 Dry Suspension का भी एक ख़ास बैच इस लिस्ट में शामिल है. ये दवा गले, फेफड़े और यूरिनरी ट्रैक्ट यानी पेशाब नली के गंभीर बैक्टीरियल इंफेक्शन से बच्चों के इलाज के लिए दिया जाता है.
-हाई ब्लड प्रेशर के लिए इस्तेमाल होनी वाली Telmisartan tablets के कई बैच क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गए हैं. इस दवा को Life Max Cancer Laboratories हरिद्वार में बनाया जाता है.
-पेट के इंफेक्शन के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक Metronidazole के एक ख़ास बैच को क्वालिटी टेस्ट में फेल बताया गया है. इसे सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड बनाती है.
कहां हुई इन दवाओं की जांच?
सिक्किम, पुणे, बद्दी, हरिद्वार जैसी तमाम जगहों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में बनाई गईं इन सभी दवाओं की जांच कोलकाता, मुंबई, चंडीगढ़, गुवाहाटी की लैब्स में की गई है.
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कंपनियों का स्पष्टीकरण भी किया जारी
CDSCO ने एक और लिस्ट जारी की है, जिसमें कुछ बड़ी फार्मा कंपनियों की दवाओं के खास बैचेज़ के टेस्ट में फेल होने की बात है. CDSCO ने लिस्ट में कंपनियों का स्पष्टीकरण भी जारी किया है:-
-Sun Pharma जैसी बड़ी फार्मा कंपनी की तीन दवाओं का ज़िक्र है. इनमें इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (Erectile Dysfunction) से जुड़ी दवा Pulmosil, एसिडिटी के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा Pantocid और गॉलस्टोन को dissolve करने का दावा करने वाली दवा Ursocol 300 शामिल हैं.
-इसके अलावा हाइपरटेंशन के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा Glenmark’s Telma H भी इसमें शामिल है.
-Macleods Pharma’s की arthritis के इलाज से जुड़ी दवा Defcort 6 का इस लिस्ट में जिक्र है.
-अपने जवाब में Sun Pharma, Glenmark and Macleods ने कहा है कि लेबल के दावे के हिसाब से वास्तविक निर्माता ने जानकारी दी है कि प्रोडक्ट का संबंधित बैच उनके द्वारा बनाया गया नहीं है और वो नकली दवा है. लेकिन, इसकी जांच की रिपोर्ट आनी बाकी है.
सेल्फ मेडिकेशन क्या है?
सेल्फ-मेडिकेशन डॉक्टर या हेल्थ वर्कर को बिना दिखाए, बिना सलाह लिए खुद से केमिस्ट से दवा खरीदकर खाने को कहते हैं. इसका कई बार बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है, क्योंकि दुकानदार की दी गई दवाइयों का आपकी हेल्थ पर लॉन्गटर्म इफेक्ट पड़ सका है.
सेल्फ मेडिकेशन कितना खतरनाक?
एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 66.4% लोगों में ख़ुद दवा लेने की आदत है. यानी वो बिना डॉक्टर की सलाह से दवा ले लेते हैं. इनमें से अधिकतर यानी 45% बुखार, 40.1% लोग खांसी और 31.8% लोग ज़ुकाम के लिए खुद ही दवा ले लेते हैं. सेल्फ मेडिकेशन में एलोपैथी की दवाओं को 83.2% लोग ख़ुद ही ले लेते हैं. पैरासिटेमॉल तो सबसे आम है. बुखार होने पर 52% लोग इसे खुद ले लेते हैं. जबकि 21% लोग कफ़ का सिरप खुद से खरीदकर पीने लगते हैं.
भारत में दवाएं बिना डॉक्टर की पर्ची के भी बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. लेकिन, ऐसा करना अपनी सेहत से खेलने से कम नहीं है. डॉक्टर से बेहतर कोई नहीं बता सकता कि किसी को दवा लेनी चाहिए या नहीं. अगर दवा लेनी चाहिए तो कौन सी.
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कैसे करें नकली दवा की पहचान?
-ध्यान से देखने पर ये नकली दवाएं बिल्कुल असली जैसी ही लगती हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में लेबलिंग में कुछ न कुछ कमियां होती हैं. इससे आप इन दवाओं की पहचान कर सकते हैं.
-अगर आपने पहले यह दवा इस्तेमाल की है, तो पुरानी और नई पैकेजिंग की तुलना कर फर्क समझ जाएंगे.
-कई मामलों में नकली दवाओं के लेबलिंग में स्पेलिंग या ग्रामर के एरर होते हैं, तो बहुत बारीकी से देखने पर पकड़ में आते हैं.
-केंद्र सरकार ने शीर्ष 300 ब्रांडेड नाम से बिकने वाली दवाओं को नोटिफाई किया है. अगस्त 2023 के बाद बनी इन सभी दवाओं की पैकेजिंग पर बारकोड या QR कोड होता है. उसे स्कैन करते ही उसकी पूरी जानकारी सामने आ जाती है.
-केमिस्ट से दवाइयां खरीदते समय उनकी सीलिंग और पैकेजिंग को अच्छे से जांच लें. कभी-कभी नकली दवाएं साइज, शेप और कलर में कुछ अलग दिखती हैं.
– अगर आपने ऑनलाइन दवाएं खरीदी हैं, तो दवाएं खरीदने के बाद अपने उन्हें अपने डॉक्टर को जरूर दिखाएं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
केरल स्टेट यूनिट की रिसर्च सेल के चेयरमैन और नेशनल IMA कोविड टास्क फोर्स के को-चेयरमैन डॉ. राजीव जयदेवन ने कहा, “CDSCO की जांच में कुछ दवाई नॉन स्टैंडर्ड पाई गई हैं. इसका मतलब है कि दवा में करेक्ट अमाउंट का कंपाउंड नहीं होगा. या कुछ एडल्टरेंट होगा या नकली दवा होगी. CDSCO की लिस्ट में कई ऐसी दवाइयां हैं, जो बड़ी कंपनियां बनाती हालांकि, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि सारी दवाइयां नकली हैं.”
क्या कहते हैं केमिस्ट?
भुटानी मेडिकल्स के रमेश भुटानी कहते हैं, “फेक दवाइयां बनती हैं और बिकती भी हैं. जब हम कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर से खरीदने की वजह इधर-उधर से दवाइयां खरीदते हैं, तभी इस प्रकार की दिक्कतें आती हैं.”
कालका डिस्काउंट फार्मेसी के अमित शर्मा कहते हैं, “सरकार ने जो किया है बहुत अच्छा कदम है. मेरी अपील है कि जो दवाइयां चेक नहीं की गई, उन्हें भी चेक किया जाना चाहिए. ताकि नकली दवाओं का बाजार बंद हो. क्योंकि ये सीधे तौर पर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ है.”
क्या कहते हैं ग्राहक?
पुरानी दिल्ली के रहने वाले मनीष शर्मा कहते हैं, “ये बहुत गंभीर मामला है. जो भी कंपनियां इस तरह की दवाइयां बना रही हैं, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए. जिससे आने वाले समय में सभी को सबक मिल सके.”
मोहम्मद शानू कहते हैं, “जो भी खराब क्वालिटी की दवाइयां हैं, उसे बंद करना चाहिए. मार्केट में आने से पहले सरकार को इन दवाओं की जांच करानी चाहिए.”
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